पिछले लेखों में मैंने 'सजगता' का उल्लेख किया है। क्या आपको अपनी बुद्धि एक सप्ताह में ही दोगुनी करनी है? दोगुनी मतलब पहले से अधिक प्रखर।
संसार में ध्यान की असंख्य विधियाँ हैं, जितने गुरु उतनी विधि, जितने विचारक उतने प्रकार। एक गुरु था, जोकि किसी के ऊटपटांग प्रश्न पूछने पर अबूझ भाषा में चीखने लगता था। मतलब कुछ भी अगड़म बगड़म चिल्लाने लगता था। मतलब पागलों की तरह अनर्गल प्रलाप, जिसका कोई अर्थ न हो। सही वार्तालाप होने पर वही गुरु शान्त रहता था। ओशो ने इसी अवस्था को लेकर एक नई ध्यान पद्धति विकसित कर दी और उसका नामकरण कर दिया 'जिबरिस'। इसमें साधकों को छोटे बच्चों की तरह रोना हँसना आदि रहता है, बिना किसी तात्पर्य के और कुछ भी बड़-बड़ बड़बड़ाना रहता है जिसका कोई अर्थ न हो। इस पद्धति का उद्देश्य यह है कि अबूझ भाषा में आपके भीतर की कलुषता, बेचैनी, अकुलाहट आदि सब बाहर निकल जाए और आप भीतर से एकदम खाली, शान्त हो जाँय। मेरी कई प्रिय पद्धतियों में एक है 'सजग' होना, सजग रहना। हर समय हर स्थान पर सजग रहना। आप बैठे हैं तो आपको यह सजगता रहनी चाहिए कि आपका पैर कहाँ है, हाथ कहाँ है, आप क्या देख रहे हैं और क्या सुन रहे हैं। यदि ध्यान देंगे और अभ्यास करेंगे तो पायेंगे कि आपके दिमाग में उठते विचार एकदम शान्त हो गए हैं क्योंकि आपका ध्यान अपने शरीर की हरकतों पर सूक्ष्मता से लगा हुआ है, तो फिर 'पेट्रोल के रेट क्यों बढ़े' जैसे अनर्गल प्रलाप के लिए आपके पास समय ही नहीं होगा। भारतीय ध्यान, चीन जाकर बना च्यान, च्यान से चेन तथा चेन से झेन। चीन आदि प्रान्तों में कुछ साधन झेन प्रथा के भी होते हैं। झेन में यह विधि बहुत लोकप्रिय है। वे मार्शल आर्ट (कुंगफू आदि) के अच्छे ज्ञाता होते हैं। क्यों? कैसे? तो वो ऐसे कि वे अपने शरीर के प्रत्येक अंग की हरकतों पर ध्यान रखते हैं। उनका ध्यान ही यही है। वे झाड़ू लगा रहे हैं तो बस उनका ध्यान पूरी तरह झाड़ू की प्रक्रिया पर रहता है, और उससे उनके शरीर के अंगों पर उत्पन्न होने वाले प्रभावों को वे बहुत सूक्ष्मता से अवलोकित कर रहे होते हैं। इससे क्या होता है? इससे होता यह है कि जब आप अपनी किसी ख़ास माँसपेशी पर ध्यान देते हैं, तो बस केवल ध्यान देने भर से वह 'पुष्ट' होने लगती है। शारीरिक व्यायाम तो आप सब जानते ही हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि आप बिस्तर पर आँख मूँद कर लेटे-लेटे भी यदि किसी व्यायाम के बारे में केवल सोचेंगे भर, तो इससे ही आपको बीस से चालीस प्रतिशत का लाभ हो जाएगा। यदि आप मन में डम्बल मार रहे हैं, और पूरे 'ध्यान' से मार रहे हैं तो आपकी माँसपेशियों पर इसका असर अवश्य पड़ेगा। परन्तु यह आपकी ध्यान की गहराई पर निर्भर करता है। आइये आपको ध्यान की एक छोटी सी झलक दिखलाता हूँ मैं। आप बताइये कि आखिर एक खट्टे नीम्बू का यदि आप सूक्ष्मता से वर्णन करें किसी के सामने, तो आपके तथा सुनने वाले, दोनों के मुँह में लार आ जाती है या नहीं? अवश्य आएगी, यदि आप पूरे मनोयोग से नीम्बू के बारे में सोचेंगे तो। तो अब आप मुझे यह बताइए कि कहाँ है नीम्बू? यह तो केवल आपकी कल्पना थी। परन्तु सोचते ही, यथार्थ में आपके अन्दर शारीरिक परिवर्तन कैसे आ गया? कैसे लार बन गई? यही होता है ध्यान। ऐसे ही झेन लोग कम मेहनत में भी कुंगफू आदि से अपने शरीर को इतना सक्षम बना लेते हैं कि वे अजेय हो जाते हैं। वे कुछ भी करते हैं तो 'सजग' रहते हैं। नहाते हैं तो पानी से लेकर बाल्टी, मग्गा, पानी की शरीर पर पड़ती धार आदि को पूर्णतया महसूस कर रहे होते हैं। वे साँस भी ले रहे होते हैं तो साँस कहाँ कितनी कैसे जा आ रही है उसके प्रति भी सजग रहते हैं। खाना खा रहे हैं तो एक एक कौर, एक एक व्यंजन और उसमें पड़े एक एक मसालों और उनसे क्या क्या फायदा नुकसान होगा इन सबके प्रति सतर्क रहते हैं। अब आप बताइये कि कोई ऐसे चौबीस घंटे ध्यानावस्था में होगा, तो वो कुत्सित कामी आपियों द्वारा दिल्ली में शिक्षा की पूरी पद्धति बदल देने से समाज पर क्या क्या असर पड़ेगा, उसका त्वरित ज्ञान नहीं हो जाएगा क्षण भर में? वह सर्वज्ञ होने लगता है। वह चीजों को क्षण भर देखने के उपरान्त ही उसका भूत भविष्य वर्तमान समझ सकता है। उसकी बुद्धि बहुत प्रखर हो जाती है। मैं, आपकी बुद्धि एक सप्ताह में ही दोगुनी कर देने का भरोसा देता हूँ, यदि आप मेरे कहे अनुसार ईमानदारी से काम करते हैं तो। आप अपने शरीर की हरकतों के प्रति सजग हो जाइए। एकदम एलर्ट। कुछ और मत सोचिये, बस दृष्टा बनिए, देखिये। साथ में यह भी करिए कि यदि आप रोज दाहिने हाथ से मग्गा उठा कर नहाते हैं तो अब बाएं हाथ से उठाइये। नित्यकर्म खाना आदि को यथावत रखिये, परन्तु अन्य कामों को अब दोनों हाथ से करने की आदत डालिए। थोड़ा थोड़ा अपने उलटे हाथ से लिखिए। उलटे हाथ में मोबाइल पकड़कर कुछ लिखिए पढ़िए। हर वो दैनन्दिन कार्य जो आप किसी एक ही हाथ से करने के अभ्यस्त हो चुके हैं, उसको दूसरे हाथ से भी करने का प्रयत्न करिए। हमारे दिमाग के दोनों हिस्से शरीर के विपरीत हिस्सों को नियंत्रित करते हैं। जब आप अपने शारीरिक कार्य बदल देंगे तो मजबूरन दिमाग को भी 'अतिरिक्त' कार्य करना पड़ेगा। सोये हिस्से जागृत होने लगेंगे। हम अपने दिमाग का दो से तीन प्रतिशत हिस्सा ही उपयोग कर पाते हैं, परन्तु इस विधि से आप अपने दिमाग के सोये हिस्सों को जागने पर मजबूर कर देंगे। यह मैं खयाली पुलाव नहीं बता रहा हूँ, यह सैकड़ों वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध हुई बात है। आपका दिन शुभ हो, मेरा भी हो। इं. प्रदीप शुक्ला Source https://www.facebook.com/pkshukla7/posts/10226449519293934
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